काम यात्रा : (एकल)
-मस्तो
{इस नाटक का प्रदर्शन अभी नहीं हुआ है}
प्रथम उल्लास
(नृत्य करते हुए स्त्री का प्रवेश )
नमस्कार ! सभी कलाओं में मुझे नृत्य बेहद पसंद है देखिये ना यहाँ कला और कलाकार २ नहीं रहते एक हो जाते हैं तभी वो अति सुन्दर होता है पेंटिंग में पेंटिंग अलग और उसको बनाने वाला अलग, सिंगिंग में कुछ महान गायक वहां पहुचते हैं जहाँ वो सरापा..आरोह अवरोह का रूप हो के ध्वनि हो जायें पर एक नर्तकी शुरू से आख़िर तक सर से पाँव तक शुद्ध कला होती है कला और कलाकार एक हो जाते हैं non-duality
कोई दूसरा नहीं अद्वैत बृहदारण्यक उपनिषद् कहता है , ”An ocean is that one seer, without any duality [Advaita]; this is the Brahma-world, O King. Thus did Yajnavalkya teach him. This is his highest goal, this is his highest success, this is his highest world, this is his highest bliss. All other creatures live on a small portion of that bliss.”
मैं बात करने चलूंगी तो एक सिरा पकडूगी...मैं कपिल मुनि का आश्रय लेती हूँ.. और सांख्य दर्शन से बात प्रारम्भ करती हूँ
अद्वैत से
यानि कोई दूसरा नहीं है| वो जो एक है | वो स्वतंत्र है...मुक्त | पर खेल एक से कहाँ होगा | वो जो एक पदार्थ है | वो मैं हूँ मैं अनंत काल से सो रही थी| पर इस काल का आभास तो तब हुआ | जब मैं जागी | देखा क्या ! काल भी सो रहा है| बताओ ? ये भी कोई बात है...मैं जो पदार्थ हूँ ..डार्क मैटर काला पदार्थ| उठ बैठी.और समय सो रहा है | पहले तो मैंने अकेले कुछ खेलना चाहा पर बोर होने लगी...फिर खुद से कहा काली इस काल को उठाओ और मैं चढ़ बैठी उस ... वो कहता रहा,” मुझे सोने दो..मुझे सोने दो”| पर मने एक न सुनी | वो उठते ही बोला,” क्या है ?” | मैंने कहा मैं बोर हो रही | “तो ?” | अरे उठो..उठो...उठोSS मुझे खेलना है...और वो उठ खड़ा हुआ मेरे साथ खेलने
और यूँ ही अपनी धुरी पर घूमते...अक्सर हम बदल लेतें हैं किरदार| और हम दो हैं भी कहाँ | हम दोनों का स्वभाव है मुक्त रहना पर जैसे पकड़म-पकडाई में कोई एक भागता है स्वतंत्र रहना चाहता है और दूसरा पकड़ना
मैं प्रकृति हुई अग्नि, जल, आकाश, पृथ्वी और वायु समेटे और वो पुरुष यानी जीवात्मा ! रूह !
रूह का स्वभाव है स्वतंत्रता | विकास !
और मैं शरीर और ये दुनिया बन के उसको बांधती हूँ..इस शरीर के पांचो तत्व को एक अवधि खत्म करने के बाद अपने में मिला लेती हूँ मृत्यु पे पहले वायु, फिर अग्नि और फिर आकश और जल के जाने पे पृथ्वी में पृथ्वी का शरीर मिल जाता है.
मैं क्यों पकड़ती बांधती हूँ ? अरे खेल के लिए | पकड़म- पकडाई में कोई चोर बनेगा तभी न कोई भागेगा और खेल होगा..(बुद्धू हो बिल्कुल) | आखिर में पाना तो स्वतंत्रता है...पर मैं न फिर भी बोर हुई....तो पुरुष को पुन: पुरुष और स्त्री में तोड़ मैं भी खेल में दो तरफ़ा शामिल हो गयी...
अच्छा पता है मैं न बस इस दुनिया में खेलती.. दूसरी दुनिया में तो बस पुरुष का भुगतान है...आपने सभी धर्मों के जन्नत दोज़ख स्वर्ग नर्क हेवेन हेल के description पढ़ें हैं सब पुरुष पॉइंट ऑफ़ व्यू से उनके लिए..मैं न जाती जन्नत दोज़ख...अपना तो अलग ही हिसाब क्योकि मैं ही तो खेल बनाया शुरू किया.
सांख्य का अर्थ जानते हैं आप ? नंबर्स और खेल है इन्ही तयशुदा नंबर्स की कोडिंग का...जटिल है आप समझ नहीं पाओगे....इस खेल के लोगों को लगता है 4 पड़ाव है धर्म अर्थ काम मोक्ष पर चौथा तो फाइनल डेस्टिनेशन है वो तो अपने आप मिलेगा वो तो मुक्ति है स्व भाव ! आप धर्म पकड़ रहे...अर्थ साध रहे....काम समझने से पहले ही मोक्ष की तरफ भागे गयी भैंस पानी में..इन लोगों के लिए मोक्ष की असल मीनिंग मिलेगी यूँ भी संस्कृत शब्दकोष में मोक्ष की मीनिंग डाउन फॉल है
वीडियो game खेले वाले मेरी बात समझेगे..पिछला स्टेज क्लियर नहीं हुआ तो अगला स्टेज कैसे मिलेगा...
काम यानि आपकी क्या इच्छाएं हैं डिजायर है उनको परत दर परत उघाड़ना और डिजायर के पार जा के ये स्टेप पार होगा...अंकुश लगा के...नियंत्रित करने का जो प्रयास किये वो असफल रहे इन्द्रियाँ जो इच्छाओं को ...काम को पूरित करती.. उनपे, मस्तिष्क डिक्टेटर शिप नहीं चला सकता वहां वहां democracy ही चलेगी .. मन जो इन्द्रियों का राजा है जब तक उनका दोस्त नहीं हो जाता तब तक कोई पार कहाँ ?
ये राज़ है बस कुछ विरले योगी ही इसको जानते हैं लोगों को लगता है योगी का मन इन्द्रियों को जीत चुका है पर असल में वो उनसे दोस्ती कर चुका होता है और सब इन्द्रियों से खूब स्वाद लेता है और मुक्त बना रहा है इसलिए ही तो कहा गया है “योगी परम भोगी”
ये जो हमारी डिज़ायर है इच्छाएं इनके सेंटर में sex ही है हाँ आपका काम..ओह ये सिगमंड फ्रायड भी कह रहा था पढ़ा था आपने ?
हमारी इच्छाएं `
क्षीर सागर सी हैं
जिसमें
हम डुबकी लगा रहे
पर कहाँ तक पहुचे
क्या क्या देखा
जान नहीं पाते
ये श्वेत वर्ण
जो सब कुछ लौटा देता है
अकेले पार नहीं होता
दम घुंट जाएगा
इसलिए
तुम और मैं हूँ
यानि हम
Democracy से डर तो लगता है ? किसको ?? अरे वो जो शासक वर्ग है.. क्यों ? कोई भी टॉप पे पहुँच जाएगा..फिर राजा तो राजा बना रहेना चाहता है अपनी स्वतंत्रता के लिए...
देवता भी स्वतंत्रता चाहते हैं इसीलिए शासक व्यवस्था का हिस्सा बने रहना चाहते हैं...सत्य, त्याग और बराबरी जब कोई राजा अपना लेगा तो वो राजा का जनता का हिस्सा हो जायेगा कथा है दैत्य राजा बलि जब स्वर्ग पहुचे तो उनकी सत्य निष्ठा, तप, प्रेम, त्याग और बराबरी के बर्ताव के कारण जो तेज़ उत्पन्न हुआ सभी देवता स्वर्ग से भाग गए
अब आप बताओ सद्गुण देख भाग गए ? देवता और दैत्य किसका दामन पकड़ें फिर हम और उस शैतान का शुक्रिया अदा करें जिसके कारण हमारी अक्ल ठिकाने लगी ?
खैर ! दूसरी कहानी सुनती हूँ जब तारकासुर ने सब कुछ जीत लिया और देवता उसके यहाँ जी हजूरी करने के लिए विवश हो गए तो उन्होंने उपाय पता किया ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया महाकाल के पुत्र द्वारा उसकी मृत्यु संभव है
महाकाली हिमालय के यहाँ जन्म ले चुकीं थी..पर शिव तो तपस्या में लींन...देवताओं ने काम देव को काम पे लगाया...और उपाय तो न हुआ, शिव की क्रोधाग्नि से काम देव जल के स्वाह : हो गए
पर पार्वती जी ने तो मन बना लिया था इन्ही शिव से विवाह करना है शिव राज़ी नहीं हो रहे ये वो दौर था कि लड़कियां भी प्रणय निवेदन यानि प्रपोज़ करने का सोच सकती थी खैर पार्वती को शिव को राज़ी करना था और बताना है बॉस कौन है
शिव समाधि टूटने के बाद बैठे थे सप्तऋषि आते हैं पार्वती की तपस्या के बारे में बताते हैं जिसमें वो अपने शरीर को तपा रही थी...ताकि शिव विवाह के लिए हाँ कह दें..नटराज ने जब पार्वती को देखा तो मोहित हुए बिना कैसे रह सकते थे...पर उन्होंने छत्र- दण्ड से युक्त एक जटाधारी वृद्ध ब्रह्मण का वेश बनाया और गिरजा जी के वन में प्रवेश किया..और प्रीति पूर्वार्क उत्सुकता से देवि के समीप पहुंचे
वहां देवि अपनी सखियों से घिरी बैठी थी वेदी के ऊपर
वृद्ध ब्रह्मण को देखके उनको प्रणाम किया अतिथि की पूजा और भोजन इत्यादि का प्रबंध किया और उनसे पूछा,’ आप के तेज़ से पूरा वन प्रदेश आलोकित हो रहा हर तरफ शान्ति है
आप ब्रह्मचारी रूप धारण किये हुए कौन है ? कहाँ से आयें हैं ? “
मुनि
के रूप में नटराज बोले “ मैं अपनी इच्छा से हर जगह भ्रमण करने वाला और सबको सुख पहुचाने और उपकार
करने वाला हूँ..”
बातों बातों में गिरिजा ने जब बाते वो शिव को पति रूप में पाना चाहती हैं तो उस
ब्रह्मण ने दुःख प्रकट करते हुए कहा, “ तुम इतनी सुकोमल,
पवित्र.. हिमालय राज की पुत्री मैं उस रूद्र को जनता हूँ बैल की सवारी करता है
विकृत मन वाला वैरागी सदा अकेले रहने वाला है ..कहाँ चक्कर में पड़ी हो मुझे तो नहीं सही लग रहा तुम दोनों के
स्वभाव में कितना विरोध है...” इसके बाद वृद्ध ब्रह्मण ने और
बुराई की
उधर देवि का क्रोध बढ़ रहा था और फिर वो ब्रह्मण को गरियाना शुरू करतीं हैं,” मैं तो आपको महात्मा समझ रही थी लेकिन आप छी: ! अगर आप अतिथि न होते तो मेरे द्वारा आपका वध हो गया होता. और आप तुरंत यहाँ से निकल जाइए ...” और इधर पार्वती मुड़ती है शिव उनका वस्त्र पकड़ लेते हैं अपने असली रूप में आ जाते हैं
शिव पुराण में जो श्लोक हैं उसका शब्दश: अनुवाद होगा “ हे प्रेमनिर्भरे ! तुमने मुझे अपना दास बना लिया है तुम्हारे सौंदर्य को देखे बिना मेरा एक-एक क्षण युग के सामान बीत रहा है...लज्जा त्यागो क्योकि तुम्ही मेरी सनातन पत्नी हो..”
ये लज्जा त्यागना ही प्रणय निवेदन है या कहूँ प्रेम निवेदन लव मेकिंग खैर ! देवि ने कुछ और सोचा हुआ था उन्होंने कहा कि सुनो “इतना ड्रामा करते हो तो नट का रूप धर के आओ और भिक्षा में मेरे माँ पिता से मुझे मांगो अगर वो अपनी कन्या दान दे दें तो ठीक “
अब शिव करते क्या, “नट का भेष बनाया लाल चोगा बाएं हाथ में श्रृंग, श्रृंग समझते हैं सींग से बना एक वाद्य यंत्र होता है तो बाये हाथ में श्रृंग दायें हाथ में डमरू पीठ पर कंथा ..पाँव से आती छम छम की आवाज़ लिए पहुचें हिमालय और मेनका के पास उनके नगर
सब नगर वासी बच्चे स्त्री वृद्ध निकल के कौतूहल से खेल देखने लगे जोगी का
जोगी का संगत खेल
खेल..
तमाशा..
यार..
खिलौने..
:
मैं भी
चुप
और
तू भी
चुप है...
:
परिचय देता
गुरु आत्मा
चेला मनवा
खेल खिलाये
खेल भी देखे
मौन रहे
और बोल भी बोले
:
बोल रे जोगी
मन के भीतर
जो भी उमड़े
तू तो जाने
मन ही मंतर
:
इस भूमि में
पंच दरवाज़े
पांच खिड़कियाँ
जिनमें घूमें पांच परिंदे
:
पकड़ सके तो
पकड़ परिंदे
पकड़ न आये ?
कर के दोस्ती
पाँचों पंछी
जोगी के कन्धे बैठे
तू नाप सके तो
नाप ले हर क्षण
जोग हमेशा
कम ही पाए..
खेल निराला जोगी खेले..
काल हुए वो
काल ही पूजे
हारे हर दम
दम दम पाए !
उत्तम नृत्य और गान देख के मेनका दें स्वर्ण मुद्राएँ देनी चाहि तो नट ने लेने से इनकार किया और दान की भिक्षा में पार्वती को माँगा...मेनका नाराज होती है बुरा भला कहती हैं, पार्वती पास से सब देख हँस रही हैं... नट को और हिमालय नट को नगर से बाहर भेजने का हुक्म ज़ारी करते हैं
पर कोई बहार नहीं निकाल पाता
कभी नट रुपी शिव को कोई विष्णु रूपधारी कभी ब्रह्मा कभी सूर्य रूप धारी रूप में खेल खेलते दीखते हैं हिमालय को पर जब पिता को पार्वती का नट के साथ मनोहर हास करते देखते हैं समझने में देर नहीं लगती और फिर दान दिया जाता है है और पार्वती -शिव जी का ब्याह होता है
वैसे वो दौर और आज का पिता तुरंत जान लेते हैं बेटी किसी से बात कर रही है तो उसमें इंट्रेस्टेड है कि नहीं..
खैर ! इसके बाद भी ब्याह से पहले शिव रूप बदल के डेटिंग के लिए पारवती से मिलने आते रहे हैं...उसकी कथा फिर कभी !
कथा भटक गयी तारकासुर के मृत्यु की कथा शुरू हुई थी
विवाह उपरान्त महाकाल महाकाली के साथ देवदारु के वन में जाते हैं, नंदी अपनी पीठ पे बैठा कर उनको ले जाते हैं वन के एक गुफा में दोनों दाख़िल होते हैं जिसे भीतर बहुत मनोरम तरीके से सजा कर रखा गया है
नंदी बाहर बैठे इंतज़ार कर रहे होते हैं...महाकाल उन्हें एक ग्रन्थ लिखने को कहते हैं
देवता तो बेहद खुश हैं कि अब शिव पुत्र पैदा होगा और तारकासुर का अंत होगा और फिर देवताओं को पुन: राज्य मिल जाएगा और इंतज़ार करने लगते हैं...वर्ष पे वर्ष बीत ते चले गए देवता इंतज़ार कर रहे और नंदी इस इंतज़ार की वेला में हर वर्ष अपने ग्रन्थ में एक अध्याय लिखते चले जाते
यूँ ही महाकाली ने महाकाल का वरण नहीं किया जो रति क्रीडा में इतने निपुण हैं कि कल्पना से परेय है
रावण शिव तांडव स्त्रोत में कहते हैं
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥
जो पावती के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।
हो सकता है आपको अटपटा लगे स्तन के अग्रभाग क्या पर संस्कृत में निपल्स शब्द का के
लिए कोई शब्द नहीं है और स्तन यूँ भी जनन अंग नहीं है सेक्सुअल ओरगन नहीं है ये तो
आपने बना दिया है अपनी फैंटेसी में .
शिव पार्वती विवाह से पहले रामायण काल में तो स्त्री और पुरुष सिर्फ कमर से नीचे का हिस्सा ही ढकते थे ऊपरी हिस्सा खुला होता हाउ चन्दन आदि से लेप किया हुआ
खैर ! महादेव और महादेवि भीतर हैं और एक दो दस सौ दो सौ तीन सौ पांच सौ आठ सौ और हज़ार साल हो गए शिव पार्वती बहार नहीं आये
नंदी एक हज़ार अध्याय का एक ग्रन्थ लिख चुके थे उन्होंने सोचा ग्रन्थ अपनी पत्नी सुयशा को दिखा लें...और उनके उस जगह से हटते ही देवताओं की हिम्मत हुई कि पता करें और अग्नि कबूतर बन के गुफा में जाते हैं, पार्वती को पर पुरुष का आभास होता है वो कमल के चादर से खुद को ढकती हैं इस सब सिलसिले में सिव का वीर्य बहार आता है जो अग्नि धारण करते हैं और वो गंगा में जाते हैं फिर कैसे बांसों के झुरमुट जो पार्वती की तपो भूमि रहा है कार्तिकेय का जन्म होता है और कैसे कृतिकायें उनको पालती हैं और उनको देवताओं का सेनापति बनाया जाता है और वो स्कंद कुमार कैसे तारकासुर का अंत करते हैं कम या ज्याद: आपको पता ही होगा
मैं आपका ध्यान उस एक हज़ार अध्याय वाले ग्रन्थ पे लान चाह रह थी जो नंदी ने लिखा था वो ही काम शास्त्र कहलाया...इस ग्रन्थ का कोई हिस्सा प्राप्त नहीं है
पर इसका आधार बना के अन्य ग्रन्थ लिखे गए उन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है
महा रात्री
दो बच्चों ने
एक दूसरे को
खिलौना समझ कर
हैरत से छू छू के देखा
मगर बच्चे थकते कहाँ हैं खेल से
बरसों बाद
चादर गिरी बिस्तर से
एक कबूतर
समय बन
फुर्र से खिड़की से निकला