लॉजिक का क़त्ल

इमोशनल रिएक्शन चूँकि डिक्टेटरशिप को सपोर्ट करता है इसलिए हुजूम को चार्ज़ अप किया जा रहा कि लोग इमोशनल बयानबाजी करें।
ज्याद:तर पोलटिकल पार्टी चाहती है कि आप लॉजिक से नहीं इमोशन से निर्णय लें।
पोलिटिकल बात ही क्यों किसी भी बड़ी कंपनी के विज्ञापन देखिये, सब जगह इमोशनली एडवर्टीजमेंट प्लान किया जाता  है, क्योकि इमोशनल बातों के नशे में आपकी इन्द्रियाँ जो डाटा भेजती है दिमाग का लॉजिकल पार्ट ग्रहण नहीं करता..

भारतीय पोलटिकल पार्टीयाँ सोशलिस्ट पानी से सानी ज़रूर गयीं थी पर जैसे आँख का पानी मरता है, इनका पानी भी सूख गया है, अब सब किसी बड़े ब्रांड की तरह बीहेव करतीं हैं यानी शुद्ध कैप्लोस्टिक अप्रोच...
जिसने बड़ी एजेंसी हायर करी वो बड़ा ब्रांड बनेगा..और पार्टी प्रसून पल्लवित होगी। 

लगभग किसी भी पार्टी में पूर्णतया लोकतंत्र आपको दिखता है? अभी ये नहीं सोचिये कि किसमें कम है किसमें ज्याद: ...कोई भी नहीं तो ये खुद कैसे लोकतंत्र का झंडा ले के चल सकते हैं ?

पर हमें इसी खटारा गाड़ी में से चुनाव करना है और यात्रा करनी है..जब तक एक एक कर के इसके सब पुर्जे बदल नहीं देते और गाड़ी नयी नहीं हो जाती।

कुछ साल पहले दिल्ली में एक नयी गाडी का ख्वाब देखा गया था, उस ख्वाब की तामीर में उस वक़्त के विपक्ष-गाड़ी की सशक्त भूमिका थी, लोगों ने एक नयी गाडी बनायीं पर मैंने सुना.. उसका इन्जन स्टार्ट करने से पहले, बाहरी ढांचा छोड़ इन्जन विन्जन सब पुराने लगा दिए गए।
खैर अन्य गाड़ियों ने सयुक्त प्रयास से उसे दिल्ली तक ही महदूद कर दिया गया है, जिसमें पुराने  विपक्ष की ज़ोरदार भूमिका था चुनांचे उसे मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊं जैसा महसूस हो रहा था।   

इन दिनों लोग किसी भी आरोपी को आप गुनाहगार मान लेते हैं  मीडिया भी आरोपी नहीं अपराधी का शोर मचाती है फिर फेसबुक की अदालत में आप केस चला देते हैं  और फिर फाँसी की माँग करने लगते हैं।
आरुषी हत्याकांड में लोगों ने तो अपने दिमाग में बहुत कुछ इमैज़िन कर के लम्बे लम्बे फेसबुक पोस्ट में सजा भी दे दिया था। ये ही आप हैं और आपका स्वभाव है। आपने ऑनलाइन मौजूद सारी रिपोर्ट भी नहीं पढ़ी क्योकि पढने की परंपरा तो किसी विचारधारा में है नहीं। बस दूसरों के पढने की बात करिए कभी तो त्रिपुरा से महाभारत कालीन इन्टरनेट का बयान आता है क्योकि उन्होंने ज्ञान से भरी किताबों का ज़िक्र तो किया था लेकिन उनको एक नज़र देखा भी नहीं होगा ।
गीता के पहले अध्याय का पहला श्लोक
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय

धृतराष्ट्र बोले- हे सञ्जय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्रमें एकत्रित, युद्धकी इच्छावाले मेरे और पाण्डुके पुत्रोंने क्या किया ?
हाँ Present continuous tense नहीं है Past tense है, यानी लाइव टेलीकास्ट नहीं था गुरु !
क्या ले के आये थे क्या ले के जाओगे जो अक्सर कलेंडर आदि में लिखा देख लेंगे गीता सार आदि में गीत में नहीं मिलेगा। जैसे ब्रह्मांड का चक्कर लगा के आपके वाट्स एप में गिरे चाणक्य के वचन भी चाणक्य के नहीं होते, चाणक्य सेक्सिस्ट आदि ज़रूर हो सकता है पर बेवकूफी की बात नहीं करेगा इतना काश लोग समझते।

कोई भी आरोपी हो, छोटा या बड़ा, लोग क्या अब तो सरकारें भी उन्हें अपराधी ही मानती और सम्बोधित करती है।   
मुझे लगता है खान और बच्चन की फिल्म देख के बड़े हुए लोगों की अपनी ही समस्या है, ये सवाल का न जवाब देते  हैं, न जवाब तलाशतें  हैं, ये सवाल के जवाब में, सवाल करतें है और उसका जवाब आप दे दो तो फिर एक सवाल... ” हाँ मैं साइन करूँगा.....जाओ पहले उस आदमी का साइन ले के आओ जिसने मेरे बाप का साइन लिया था..पहले उस आदमी का साइन ले के आओ...जिसने मेरे माँ (अब माँ की बात के बाद तो लॉजिक की बात करने वाले को फँसी दे दो) को गाली दे के नौकरी से निकल दिया था.....” अनंत लूप...आप लगातार 120 सवालों का जवाब दे भी दो तो वो खींसे निपोर के सोल्ज़र-सोल्ज़र बोल के जीत जायेगा...

बात हार जीत की नहीं हैं जब आप लड़ते लड़ते थका हुआ महसूस करोगे, जब आप इमोशनली वीक होंगे, कोई उठ खड़ा होगा कहेगा “लोकत्रंत की यही समस्या है डिक्टेटरशिप हो जाये तो तुरंत फांसी दे दी जाती...मामला तुरन्त ख़त्म हो जाता , तो भाइयों बहनों फाँसी दी जाने चाहिए कि नहीं? तुरन्त ख़त्म होना चाहिए कि नहीं ” आप चिलाओगे “फाँसी दो फाँसी दो...ख़त्म करो ख़त्म करो ”
यूँ ही इमोशनली बहने के कारण लॉजिक का क़त्ल होता है और आप व्यवहार और तर्क से ऊपर उठ जाते हो, यहीं कोई चाहता है और आप डिक्टेटरशिप के पुतले में अनजाने में जान फूंकने लगते हो।
ध्यान से ! रास्ते के लेफ्ट और राईट डिक्टेटरशिप है मध्यममार्गी बनो यहीं डेमोक्रेसी के देवता मिलेंगे।


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