ग़ज़ल 1 in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं जाने क्या मुबहम सा वो कहता रहाधीरे-धीरे मैं जिसे दोहरा रहादेख कर मेरी तरफ देखा नहीहाँ मुझे थोडा बुरा लगता रहाजिस्म इक लंबे सफऱ से लौट करइक सफऱ के ख़्वाब फिर बुनता रहा Share:
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