ग़ज़ल 1

जाने क्या  मुबहम सा वो कहता रहा
धीरे-धीरे मैं जिसे दोहरा रहा

देख कर मेरी तरफ देखा नही
हाँ मुझे थोडा बुरा लगता रहा

जिस्म इक लंबे सफऱ से लौट कर
इक सफऱ के ख़्वाब फिर बुनता रहा  


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