ग़ज़ल 11 in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं सबको गले लगाता हूँजाने क्यों मैं ऐसा हूँमाँ अक्सर ये कहती हैमैं छोटा सा बच्चा हूँमुद्दत बाद मिलेगा वोपूछ न बैठे कैसा हूँतुमने जैसा छोड़ा था देखो अब भी वैसा हूँसबके हाथों खर्च हुआक्या मैं रुपया-पैसा हूँ Share:
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