ग़ज़ल 12



याद करके मैं तुझे रोता रहा
ज़िन्दगी का ये सफऱ अच्छा रहा

हार बैठा अपनी दुनिया तुझ से फिर
रात-दिन मैं खुद से ही लड़ता रहा

रूह की तक़लीफ़ को महसूस कर
रात भर मेरा बदन रोता रहा

कौन कहता है..मुझे तू याद है
अब गज़ल में वो कहाँ लहजा रहा

सब हकीकात जानने के बावजूद
पूछतें हैं वो बता कैसा रहा

हासिल-ए-मंजि़ल हुआ मुझको ये रंज
गर्द कू-ए-यार की ढोता रहा

मर गया मस्तो भला करते हुए
और उसके साथ क्या होता रहा !

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