ग़ज़ल 13 in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं जो होना था..वो होना था..मुझे हर हाल रोना थाकहानी में लिखा था क्या मुझे जंगल में खोना थाबदन फैला रहा था मैं..मुझे दरिया डुबोना थाखुदा ने कुछ कहा होतामुझे क्या क्या संजोना थातो आख़िर मर गया मस्तोतमाशा ख़त्म होना था Share:
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