ग़ज़ल 2



अचानक धूप मे आई ये बदली कौन है फिर
मिरे अंदर जो हंसती  है..वो बच्ची कौन है फिर

घुटन होती है जब मुझको..मैं बच जाता हूँ कैसे
कहीं भीतर जो खुलती है वो खिडक़ी कौन है फिर

इसी इक बात का खदशा लगा रहता है दिल को
जो रह रह कर चमकती है वो बिजली कौन है फिर

बना कर जिस्म को आंसूं ये तुम निकली हो वरना
भटकती फिर रही परबत मे नद्दी कौन है फिर

तिरे भीतर भी कोई घर बना बैठा है मस्तो
तिरे दर पे जो बैठी है उदासी कौन है फिर


शुक्रिया प्रमेश यहाँ ले जाने के लिए | शामा, उत्तराखंड

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