ग़ज़ल 4



फूल पर बैठा था भौरा ध्यान में
आ रहा था जाने क्या क्या ध्यान में

उड़ते जाते थे परिंदे उस तरफ
जिस तरफ सूरज उगा था ध्यान में

आईने में देख कर हैरान था मैं
मैं पिघलता मैं ही जलता ध्यान में

जाते-जाते मुझसे मौसम ने कहा
बात मैं तेरी रखूँगा ध्यान में

हाथ में सिगरिट मिरे घटती हुई
और मैं बढ़ता हुआ सा ध्यान में

मुस्कुराता ही रहा मैं रात -दिन
था तसव्वुर यार तेरा ध्यान में

इक कहानी मैं सुनाता हूँ तुम्हें
किस तरह मस्तो मिला था ध्यान में

क़तआ 
पत्थरोंके बीच बैठी रोशनी..
देखता हर रोज़ मैं था ध्यान में

रोशनी मैं हो गया उस रोज़ जब
ध्यान से गहरा था उतरा ध्यान में ...!!


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