ढका उसने मिरी उरियानियों को
कि होती जा रही है साँवली वो
ढली है शाम वादी में मैं चुप हूँ
उठे जो हूक सी दिल में वो तुम हो
समझना है मेरी जाँ! जि़ंदगी को
जऱा चीनी को तुम..पानी में घोलो
मिरे अंदर जो चढ़ती जा रही है
पहाड़ों से उतरती धूप थी वो
बराबर है मिरा होना न होना
तुम्हें कुछ फर्क पड़ता हो तो बोलो
किसी की रूह को क्यों ठेस पहुंचे
यही अच्छा है मस्तो आप रो लो
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