ग़ज़ल 6


मैने कब ये सोचा है
क्या होगा क्या  होना है

देखे से क्या दिखता है
मैने छू कर देखा है

बादल बैठे लोगों का
धरती आना सपना है

झील गाँव की सूख गयी
बगुला बैठे रोता है

खुद से इक ही वादा था
मुझको जीते रहना है

हाँ मेरी ही ग़लती थी
हाँ! मैने सच बोला है

ओढ़ के मेरी चादर को
कौन गली में बैठा है

चलते चलते दम लेने
देखो मस्तो आया है


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