ग़ज़ल 7




जोडऩे में रात दिन खुद को लगा रहता हूँ मैं
कौन ये कहता है की यक्सर बना रहता हूँ मैं

आईनों के शोर से हरदम घिरा रहता हूँ मैं
देख के फिर अक्स अपना क्यों डरा रहता हूँ मैं

बस यही इक बात खुद से पूछता रहता हूँ मैं
जब बचा ही कुछ नही क्या सोचता रहता हूँ मैं

उस से मिलने के लिए..या खुद से मिलने के लिए
किस से मिलने के लिए यूँ भागता रहता हूँ मैं

मैं उतर कर ज़िन्दगी में पाक रह सकता नही
घर में खाली बैठ कर मा’बूद सा रहता हूँ मैं

ओढ़ ली मस्तो मियां तुमने ये कैसी रंग-ओ-बू
खैर ! तुमसे क्या गिला खुद से खफा रहता हूँ मैं




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