वही रंग उसका वही तो अदा है
मिरी जान को जिसका ख़दशा लगा है
जो मैने कहा था वो तुमने सुना है
बिना बात के ही फसाना बना है
हुई रात बरसात फिर ये कहाँ से
लगी आग बस्ती में क्या माजऱा है
मिरी जात में इक पुराना कुआँ था
न जाने कहाँ उसको पानी मिला है
करूँ बात आखिऱ मैं किस हौसले से
मिरा कुछ भी कहना बुरा ही लगा है
बदन में छुपा के तिरी रौशनी को
मैं ये सोचता हूँ..कि क्या फायेदा है
मिरा यार और होश की ये बायाज़ें
बता दिल मिरे तू किसे चाहता है
ठहरिये जी मस्तो ठहरिये जऱा सा
जऱा ! सोचिए अब तो घर आ गया है
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