आदतें भी अजीब होती हैं

जब ग्रेजुएशन कर रहा था तब लफ्ज़ लफ्ज़ जोड़ के कुछ कहना शुरू किया था, उस वक़्त  गुलज़ार के मिसरे पे एक नज़्म बाँधी थी आदतें भी अजीब होती हैं ..
उस दौर में इसे लोगों ने इतना पसंद नहीं किया होता तो शायद मैं बस इंजीनीयर ग्रेजुएट ही होता
ये 2007 के आस पास कही गयी  परफॉरमेंस पोएट्री सी है, सुन ने वालों से कहता था आदतें भी अजीब होती हैं वो हर नज़्म के बाद कहें...उस सिलसिले की 24 नज्में हाज़िर हैं...

 

 



आदतें भी अजीब होती हैं

 

1

 

तुम्हारी आदत
काजल लगाना
…बिन बात के रोना…
मेरी आदत
ये कहना
“काजल क्यों लगाते हो”
“और अगर लगाते हो
..तो क्यो रोते हो … “

आदतें भी अजीब होती हैं….

 


 

2

 

गोमती किनारे
अब भी..बैठ जाता हूँ..
सूरज
नदी के उस पार
डूबता जाता है..
मैं इस पार.
 


आदतें भी अजीब होती हैं….




3

 

मैं अब भी चश्मा पहने
मुँह पर
छीटें मार लेता हूँ
और
फिर हँसता हूँ
 


आदतें भी अजीब होती हैं….




4

 

अब भी
कॉफी बनाने में ..
चीनी
भूल जाता हूँ
और फीकी ही पी लेता हूँ
पर अब
ये कह नही सकता
“तुम सामने हो
तो सब मीठा”
 


आदतें भी अजीब होती हैं….




5

 

मैं अब भी
मंगलवार को
मंदिर जाता हूँ..
भीतर –बाहर
सब कुछ वैसा पता हूँ..
….
पर अब कोई ये नही कहता..
“जोड़ी बने रहे..”
जनता हूँ
नही पहुचती
 दुआ किसी की
वहाँ तक..
फिर भी देता हूँ
लड्डू
 

 


6

 

आज फिर
जाड़े की बरसात में
ख़ूब भीगा….
तुम्हारे एहसास के साथ…

 




 

7

 

सोने से पहले..
          शीशे पर..
                   जो बिंदी लगाई थी
               तुमने..
वो सुबह के इंतज़ार में है



 

8

 

सुबह
सो कर उठा
लगा
फिर तुमने
गालों पे रंग लगा दिया..
..कोई रंग ना था…
ऐसे गये..
सब रंग ले गये..
आज होली है..



 

9


 
मेरी गिटार के सुर
तुम बिगाड़ देती
और मैं
चिल्लाता
क्यों  !
फिर मिलाता सुर
तुमसे..
…..

अब जब नही मिलते हैं सुर
बिखरे हुए
चिल्ला उठता हूँ.
“क्यो छूते हो मेरा गिटार”

 

 

 

10

 

आज
पढ़ रहा था… किताब
जलने की बू आयी..
दूध सारा
जल गया…
लगा अब तुम फिर चिल्लाओगे
पर तुम थी कहाँ…

 



आदतें भी अजीब होती हैं….




11

 

अम्मा का फ़ोने आता है
कहती है
“बउआ तुम्हारे लिए एक लड़की देखी है..”
इस बात से
मैं, खीज़ जाता हूँ
उनको कैसे समझाउ
मेरे वाज़ूद का आगाज़ भी
तुम थी…और अंत भी तुम हो.
अम्मा समझ नही सकती
मैं समझा नही सकता

 


आदतें भी अजीब होती हैं….




12

 

जो घड़ी तुमने दी थी
धड़क रही है
अब तक
धक-धक धक-धक
यहाँ भी…

वहाँ भी…… ?

 



13

 

देख
शीशी में
जमी हुई
कॉफी..
..हंसता हूँ..
रो पड़ता हूँ..

 


14

 

जिस लाल स्वेटार से
तुम्हें चिढ़ थी…
उसे
आज पेहना
फबता है
मुझ पर..
पर ज़ायादा देर..
पहन नहीं पाया



 

15

 

बाईक से कही निकलता
तेज़ चलाते-चलाते ..
एका एक धीमे कर देता
ऐसा लगता
पीछे तुम बैठे हो
और तुमने
तेज़ रफ़्तार पर टोका हो

 


आदतें भी अजीब होती हैं….




16

 

सोना
डबल बेड पर
अजीब आदत है
टटोल लेता हूँ तुमको
सोते में
तुम जब नहीं मिलती
जला देता हूँ लाइट


आदतें भी अजीब होती हैं….





17

 

अब भी
पकड़े रहता हूँ कलम
अब भी
उलझ जाता हूँ मैं
अब भी
उभर आती हो तुम

 


 

18

 

अब भी
भूल जाता हूँ
टॉवेल
रो पड़ता हूँ
शावर में



आदतें भी अजीब होती हैं….




19

 

किसी को
दे दिया
फिर
तुम्हारा नंबर
कितना आसान है डिलीट  करना
मोबाइल से
पर ज़हन से ?

 

 

20


जागना रात भर
तुमने मुझसे सीखा था
या मैने तुमसे
हम रात भर जागा करते..
और जब भोर की चिड़िया
आवाज़ देती ..
तुम कहती
चलो –चलो सोते हैं…
भोर की चिड़िया
अब देर तक आवाज़ देती है..
क्या तुम सुन सकती हो ?
 


 

21
 

तुम जब बोर होती
मुझसे कहती
“मेरी तारीफ़ करो…कब से नहीं की.”
और मैं तारीफ़ करता
तो तुम कहती
“बस बस… रहने दो.”
.
तुम बोर तो अब भी होती होगी
मैं अक्सर अकेले में
इस खाली कमरे से
तुम्हारी तारीफ  
करता रहता हूँ


 

22


आज
फिर उसी
कॉफी शॉप पे गया..
मैने कैपेचीनो बोला
हमेशा की तरह…
जब काफ़ी आयी..
दो कप थी…


 

23

 

सुबह
अब भी पड़ा रहता हूँ
इंतेज़ार में
कि मिल जाए चाय

 

24

 

बैठे-बैठे
फिर
मिला दिया नंबर..
आवाज़ आई.
“ दी पर्सन यू आर ट्रयंग टू रीच
इस नॉट रीचबल.”


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