आँखें in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं किसी पत्थर की मूरत को ज़िन्दा रखती हैं एक जोड़ी आँखें जिनसे जगी रहती है उम्मीदकि कोई उन्हें देख रहा है...मेरी देवि !तुम्हारी बड़ी शफ्फाफ आँखें मेरी उम्मीद ए दुनिया है. Share:
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें