पुराने कोट से सवाल
वक़्त का दरिया कब तक बहता
मैंने उसपे बाँध बनाया
खुद को रौशन रखा मैंने
पर
कितना पानी छोड़ चुका वो
इसका अब हिसाब कहाँ है
सब कुछ मेरे काबू में है
आज फिर से उस कोट को पहना
जिसको
तुमने गिफ्ट किया था
अब भी बहुत गरम करता है
अब भी मुझ पर फबता है वो
दाग तो सारे साफ़ हो गए
रंग मगर हल्का सा डल है
जेब में मैंने हाथ जो डाला
हिना ने मेरा हाथ पकड़ कर
पोर पोर महका डाला है
कितने ड्रामें बाज़ थे हम तुम
शाम वो मैं तो भूल चुका हूँ
मैं तो सब कुछ भूल चूका हूँ
इस को अब भी याद हो तुम क्यों ?
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