एक दौर की आखरी नज़्म

 
[१]

बना कर
अक्स
पानी पर...
वो बगुला
उड़ चला था..
पार दरिया के...
हक़ीकत जान के सब...
:
नहीं देखा था
उड़ते वक़्त ..
दरिया की तरफ उसने...


[२]

हुआ मशहूर
मैं जिसके लिये..
अफ़सोस !
सद अफ़सोस  !!
मिरी सब शायरी
जिसके लिए थी
वो नहीं समझी...



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