एक दौर की आखरी नज़्म in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं [१]बना कर अक्स पानी पर...वो बगुला उड़ चला था..पार दरिया के...हक़ीकत जान के सब...:नहीं देखा थाउड़ते वक़्त ..दरिया की तरफ उसने...[२]हुआ मशहूरमैं जिसके लिये..अफ़सोस !सद अफ़सोस !!मिरी सब शायरीजिसके लिए थीवो नहीं समझी... Share:
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