बकर दार्शनिक २


मेरी रूह अगर जिस्म नहीं
तो वो दिमाग भी नहीं
अगर दिमाग भी नहीं..
तो कर लूँ क्या मैं अदला बदली रूह की ...
मैं क्या ?
कुछ और हो जाऊंगा..??
मैं जो कुछ हुआ हूँ ...
वो बस हासिल-ए-दिमाग है
..ज्ञान
रूह का हिस्सा नहीं...
तो क्या ?
ज्ञान या रूह..
सच में है ही नहीं..??


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