(ऋग्वेद के दशम मंडल की ऋचा के जो अर्थ मुझ तक पहुंचे उसका तर्जुमा। )
[१]
समय के समय में
असत् भी नहीं
और सत् भी नहीं था
न आकाश था
न ही और कुछ था
उसे घेर रक्खा था किसने?
वो किसके ? निकट था?
जहाँ वो बना था
वो कैसी जगह थी
वो गम्भीर खामोश पानी नहीं था?
तो क्या था?
फ़ना भी नहीं थी
बक़ा भी नहीं था
न ही रात थी, न दिन था
शुरू में सभी कुछ
समुन्दर था काला
वही इक ख़ुदा था
जो बिन सांस के
जी रहा था अकेले
न जाने हुआ क्या
थी किसकी ये मर्जी
ढके त्विष में
गन्दुम को हिद्दत मिली जब
मुहब्बत में सन के
वो सब्जा हुआ तब
बहुत खोज के बाद
ज़ाहिर हुआ ये
असत् साथ
सत् भी जुड़ा है
परम ज्ञान है ये
पता जब लगा
रौशनी हर तरफ
छा चुकी थी
बहुत शक्तियां
जो गन्दुम को भीतर
समेटे हुए थीं
वहीं भीतरी शक्ति
नीचे
बही जा रही थी
और
ऊपर तरफ
शक्ति मन की
बढ़ी जा रही थी
मुनादी ये फिर किसने की थी ?
यहां कौन ज्ञाता हुआ?
ये दुनिया हुयी
पैदा किससे?
यहां देवता
बाद दुनिया के आये.
तो फिर जानता कौन?
दुनिया कहां से हुयी थी?
हुयी पैदा जिससे ये दुनिया
उसी ने बनाया ?
नहीं था बनाया?
बहुत दूर आकाश में वो
नज़र रखने वाला
वो सच जानता है
या वो भी
नहीं जानता है?
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