फुसलौना in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं मैं और तुम तुम और मैंअपनी धुरी पे घूमतेअक्सर बदल लेते हैं किरदार जैसे सातों रंग घूम कर हो जाते हैं एक वैसे ही हिज्र ओ विसाल होतें हैं एक Share:
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