जोगी का संगत खेल


खेल..
तमाशा..
यार..
खिलौने..
:
मैं भी
चुप
और
तू भी
चुप है...
:
परिचय देता
गुरु आत्मा
चेला मनवा
खेल खिलाये
खेल भी देखे
मौन रहे
और बोल भी बोले
:
बोल रे जोगी
मन के भीतर 
जो भी उमड़े
तू तो जाने
मन ही मंतर
:
इस भूमि में
पंच दरवाज़े
पांच खिड़कियाँ
जिनमें घूमें पांच परिंदे
:
पकड़ सके तो
पकड़ परिंदे
पकड़ न आये ?

कर के दोस्ती
पाँचों पंछी
जोगी के कन्धे बैठे

तू नाप सके तो
नाप ले हर क्षण
जोग हमेशा
कम ही पाए..

खेल निराला जोगी खेले..
काल हुए वो 
काल ही पूजे
हारे हर दम
दम दम पाए !


 

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