सच in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं अल्लम गल्लम सीबातें करता है दिल मुझसे उसको लगता फिर से मैं उसकी बातों में आ जाउंगावो क्या जाने दूर चला आया हूँ खुद से .कितनी दूरशब्द कहाँ सुनने में आते.. ...गूँज मगर अब भी आती है...जैसे तनहा बैठा वादी में...सिहरन हल्की सी हो जाती है Share:
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