आखिऱ कैसे ?
तुमने ये जादू कर डाला...
देखा..
थामा...
समेट के मुझको
कुछ फूँका...
फिर
खुलती रही मैं...
ऊपर बढ़ती रही मैं..
भीतर आते रहे तुम..
[२]
पहले तो मैं
डरी बहुत
मैने तो
सब दरवाज़ों पे
ताले लगा रखे थे...
और चाभी पिघला के
सर्पाकार
कंगन बना लिए थे..
फिर कैसे ?
[३]
डर लगता है
ठगी गयी मैं
जन्मों जन्मों
डर तो देखो...
धीरे धीरे जाएगा...
तुम भी
पहले.. कड़वा..तीखा....खट्टा...
ज़हर चखो ...
तब जा कर फिर
मीठा पानी आएगा...
[४]
सब्र करोगे ?
:
चाँद
मिरी नाभी के नीचे सोता है...
उसे जगाओ...
ऊपर लाओ...
नाभी..
सीना..
गर्दन
फिर माथे पे होगा...
चाँद..?
हाँ वो भी..
(और हम भी)
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