जगत मिथ्या ? in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं बदलते रहते हैं अर्थ बदलती रहती हैं परिभाषायें जब ज़ाहिर हो रहा होता है सत...तुमने बदला शंकराचार्य पे यक़ीन मेरा अब सवालों का पुलिंदा लिए ये अक्ल माया है जगत सत्य यानि तुम ! Share:
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