जगत मिथ्या ?


बदलते रहते हैं अर्थ
बदलती रहती हैं परिभाषायें
जब ज़ाहिर हो रहा होता है सत
...तुमने बदला शंकराचार्य पे यक़ीन मेरा
अब सवालों का पुलिंदा लिए ये अक्ल माया है
जगत सत्य
यानि तुम !


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