काल


घडी की टिक-टिक
बेसिन से बूँद बूँद
गिरने के बीच
देखो कोई है...

हिरन की उछालों के बीच
हवा से हिलते पत्ते 
या
उनके एक रंग से
दूसरे रंग में बदलने के बीच
मैंने उसे देखा है
 
लाल पीले के बीच
वो कितनों को लगता है
और कितनों को
नीले और पीले के बीच
पर वो
लाल और नीले
काले और सफेद के बीच भी
फैला हुआ है
एक ऋतु से दूसरे ऋतु के बदलने के बीच
वो क्या तो खूब दिखता है
वो
मेरी उठती गिरती पलकों के बीच भी है
यानि
मेरी आँखों के बीच
मेरे बाजुओं के बीच
और हाँ
मेरे पाँव के बीच भी वो ही है
जो सा और रे के बीच 
कितना सुन्दर लगता है
और पूरे सरगम के बीच
अलग अलग सा दिखता वो
एक ही है
सूरज चन्दा तारों की गर्दिश के बीच
मैं उसे देख पा रहा हूँ
उसे मैं अपनी हर धडकन के बीच
देखता भी हूँ
और कभी रुकता भी हूँ
वो मेरी आती और जाती साँसों के बीच
पसरा हुआ है
और धीरे धीरे फैलता जाता है
उसे मैंने
दो कांपते हुए होटों 
दो जिस्मों के बीच
महसूस किया
फिर देखा है
वो ही दो के साथ तीसरा है
वो दो को एक करता है
और कुल एक है
ये
जिसे मैं देख रहा हूँ
जो मुझे देख रहा है
वो
मैं ही तो हूँ...



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