नुब्रा की शाम और ख्वाहिश


आवाज़ें रंग होती हैं
बनातीं हैं तस्वीर
आसमान पर
:
बच्चे के दिल की तरह है यहाँ आसमान
जिसे
ठंडी हवा
करती है पाक
किरनें  करती  हैं शफ्फाफ़
हुई अज़ान
धूल गयीं वादियां...
फिर गुरुवाणी ने
चिडिय़ों की आवाज़ के साथ
परबतों के पीछे तक विदा किया सूरज
भूरे बूढ़े खामोश परबतों पर
बच्चों से बादल
खेलते रहे देर शाम तक
हूँ अकेला
न उदासी न तन्हाई है
हो के आदम
अब के, पहली सी
शाम बितायी है


[नुब्रा लद्दाख का एक छोटा सा पहाड़ी गाँव है]


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