आज़ादी in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं कभी तुमकिसी कमरे में साल हा साल क़ैद रहे हो?.....नही ?....ओह ! तुम रो सकते हो. Share:
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