माफ़ीनामा in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं मुझे तुममुआफ करना ,तुमने जैसा चाहा था..सोचा था..मैं वैसा नहीं दिखता...मिरी हर पल बदलती हजारों ख्वाहिश हैं और हर एक ख्वाहिश के साथ बदलता जा रहा हूँ मैंमगर तुम्हारी निगाहें अब भी वहीं हैं..और मैंसमय के सरसब थोप केबच नहीं सकता । Share:
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