मेरे बिस्तर के सिरहाने
रखी है एक कुर्सी
रखी रहती हैं उस पर किताबें
मेरी डायरी,
पड़े रहते हैं पन्नें, पेन
और रखा रहता है
कभी कभी शराब का गिलास..
गर्मियों में अक्सर
उस पर
टँगी रहती है
मेरी कमीज़ें
और रात
सोने के वक़्त
रख देता हूँ
घड़ी..चश्मा...
सुबह
गलती से
टकरा गया उससे
गिर पड़ा
सब कुछ ...
बैठा हूँ ..
घंटों से
कमरे के बाहर,
कुर्सी पर...
रखी है एक कुर्सी
रखी रहती हैं उस पर किताबें
मेरी डायरी,
पड़े रहते हैं पन्नें, पेन
और रखा रहता है
कभी कभी शराब का गिलास..
गर्मियों में अक्सर
उस पर
टँगी रहती है
मेरी कमीज़ें
और रात
सोने के वक़्त
रख देता हूँ
घड़ी..चश्मा...
सुबह
गलती से
टकरा गया उससे
गिर पड़ा
सब कुछ ...
बैठा हूँ ..
घंटों से
कमरे के बाहर,
कुर्सी पर...
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें