मुझे कुछ भी खोने का डर ही कहाँ है...?


सडक़ के किनारे
खड़े हो के मैं..
गुजऱती हुई
गाडिय़ां देखता हूँ..
लगातार
सब
साँय -साँय...
मिनट दर मिनट
कुछ बदलता नहीं
क्या करूँ मैं ...
मुझे पार जाना ..
तभी ध्यान आया..
मिरी जि़न्दगी
खाक़ अब हो चुकी है
मुझे कुछ भी खोने का
डर ही कहाँ है...?
मैं क्षण भर में
सड़क के दूसरी ओर खड़ा था ...


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