शुक्रिया in पहाड़ों से उतरती धूप, मस्तो, poetry with कोई टिप्पणी नहीं तुम थेतो कभी मेरी रूह तुम्हारी रूह सेमिलना चाहती थी ..जिस्म बस देखना...कभीजिस्म की चाह थी बसजिस्म ..!तुम्हारे बाद जो घटाउस से...मेरा जिस्म मेरी रूह एक हुए ! Share:
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