दलील

बचपन में मुझको लगता था
ये कर लूंगा..
वो कर लूंगा...
जादू-टोना जंतर-मंतर
गाड़ी-घोड़ा बंगला-नौकर

अक्ल की दुनिया जो दिखलाती
देख के मैं बस
            पाने उसको
                   उधर को भागा
जैसे जैसे होश सम्भाला
               होश में आया
                    होश को पाया

जादू-टोना जंतर-मंतर
गाड़ी-घोड़ा बंगला-नौकर
सबको मैंने
छू कर देखा  

चाहत जब तक चाह रही है
तब तक उसकी प्यास बची है

जान लिया है
जीवन क्या है
कपडे पहनूं ..चुप मैं बैठूं
सब मुझको बाबा समझेंगे
नंगे हो कर सच बोलूं ..मैं!
सब मुझको पागल समझेंगे


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