भारतीय शास्त्र 2


भारत में गुरु शिष्य परंपरा रही है, और गुरुकुल सबके लिए था जो जाना चाहे जैसे राम के साथ गुह जो भील(निषाद) थे पढ़ रहे थे,   
पर समय समय पे अपवाद आयें हैं जैसे विशेष वर्ग के लिए स्कूल और ये एक ही समय में रहा है
जैसे संदीपन मुनि के यहाँ कृष्ण और सुदामा पढ़ रहे और उधर द्रोणाचार्य के स्कूल में बस केयरटेकर भीष्म की अनुमति से कोई पढ़ सकता था...जैसे द्रोणाचार्य के स्कूल में कर्ण या एकलव्य नहीं पढ़ सकते थे
एक वक़्त था जब अलग अलग ऋषि अपने आश्रम में एक एजुकेशन का सिस्टम क्रिएट करता था
यानी आप समझिए सलेबस आम तौर पे ऋषि अपने बेटे को अपने नहीं अन्य आश्रम में भेजता था अध्ययन के लिए..
और योग्य शिष्य को अलग आश्रम बना के अलग सलेबस बनाने और अलग रिसर्च करने की प्रेरणा दी जाती थी.

अनार्य पाठशाला और आर्य पाठशाला के आधार पे आप विभाजन कर सकतें हैं.
पर जो मुझे नज़र आता है आर्य एक वक़्त में जाति सूचक शब्द होगा पर समय उपरान्त ये स्टेटस सिम्बल का शब्द बन गया और ब्लड लाइन को वैसे मेंटेन नहीं किया जा सका जिसका स्वांग अभी भारत में होता है कि हम उस ऋषि कुल से हैं
नहीं मैं ये नहीं कह रहा आप उस ऋषि कुल से नहीं हैं पर आप अपने मदर साइड के ऋषि कुल को भूल गए जो उस उस और उस से सम्बंधित रहें...खैर ! इस विषय पे बात फिर कभी..

अनार्य एजुकेशन सिस्टम जिसमें द्रविण आदि जाति आती है उसमें विशेष देवता शिव का नाम आता है जैसे शिव के शिष्य नंदी कल अलग अलग शास्त्रों की रचना करना...

जिसको उस वक़्त के आर्यों की पाठशाला अस्वीकार तो कर नहीं सकतीं थीं, अपने पोलिटिकल व् निजी उद्देश्य की पूर्ती हेतु उस बड़े सलेबस में से कुछ चैप्टर लिए वो भी एडिट कर के..
इसकी झलक आपको अलग अलग जगह मिलेगी..

आम तौर पे शिष्य गुरु के साथ रहता था वही रह के शात्रों का अध्ययन करता था...पर जितना मैं समझ पाया हूँ यह बेसिक यानि स्कूल लेवल की पढाई रही है इसके बाद ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन पीएचडी रिसर्च वर्क है जिसमें कम छात्र जाते रहे हैं और उनका सिस्टम बिल्कुल अलग रहा है..
 
आपको आर्य व् अनार्य सिस्टम का मिलन देखना हो तो दत्तात्रेय के स्कूल को समझें वहां तंत्र की जटिलताओं की पढाई होती समझ कॉप्लेक्स अलोग्रिथम लाइफ जींस RNA डीएनए और यूनिवर्स को समझने की...उस स्कूल में कोई रहता नहीं

जैसे समझने के लिहाज से हम कहेंगे परशुराम जी की शुरू की एजुकेशन महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में हुई ग्रेजुएशन जमदग्नि ऋषि के यहाँ और PG कश्यप ऋषि के यहाँ हुआ और भी कई आश्रमों में वो रिसर्च पेपर लिखते रहे और शास्त्रों को ले के अपना स्कूल बना लिया..
कश्यप ने उनको गुरु दत्तात्रेय के यहाँ भेजा...
गुरु दत्तात्रेय का सिस्टम अलग था उन्होंने परशुराम जी को कुछ प्रोब्लम कुछ प्रैक्टिस करने की चीज़ दी और जाने को कहा १२ साल काम किया फिर वो दत्तात्रेय के पास हाजरी के लिए पहुंचे फिर सम इक्वेशन फिर कुछ साल की मेहनत..
अभी आप नाथ परंपरा के कुछ स्कूल में इसी परंपरा को फोलो करते देखंगे...कि गुरु कुछ अभ्यास के लिए बात कहेंगे और शिष्य निश्चित समय बाद प्रोब्लम्स ले के गुरु के पास जायेंगे..
वैसे तो उन स्कूल आदिनाथ शिव को स्कूल का प्रिंसिपल माना जाता है पर १st  टीचर यानि पहले गुरु दत्तात्रेय को माना जाता है
   
वैसे तो समय का निर्धारण करना बड़ा मुश्किल है पर समझने के दृष्टिकोण से 

१.    मनु
२.    गौतम
३.    शंख आदि मुनि
४.    पराशर मुनि

जैसे मनु के नियम और सलेबस पहले एजुकेशन सिस्टम में लागु किये गए इसे क्लासिक सतयुग कहते हैं  उसी तरह त्रेता में गौतम और द्वापर में शंख मुनि और आज के दौर में पराशर के नियम व् सलेबस

अच्छा यह पहले से तय नहीं था ये उअर बात आज के हिन्दू वीर मनु स्मृति से कोई नियम निकल के लागू करें पर वो उसी टाइम ओफ्फ्स्लेट हो गए थे गौतम मुनि का एजुकेशन सिस्टम द्वारा
शंख आदि मुनि के दौर में यानि समझिये कृष्ण का दौर बहुत कुछ ऊपर नीचे हुआ..
बहुत से किताबें पूरी की पूरी गायब हुईं...स्कूल तबाह हो रहे थे बस लड़ाइयों का दौर था...
गौतम मुनि के एजुकेशन और धर्म अर्थ काम मोक्ष के चैपर्स में फ्रीडम पे बहुत जोर था जो मनु सिस्टम में नहीं था..सो उस से बेहद सुन्दर समाज का निर्माण हुआ नए तरह के शास्त्र भी लिखे गए जैसे शिव की प्रेरणा से नंदी दावा काम शास्त्र के १००० अध्याय..

पर ऐसा स्वछंद समाज, समाज के लिए पीड़ा दायक रहा जैसे स्त्री अपनी मर्ज़ी से किसी भी पुरुष के पास जा सकती है अपनी पति को छोड़ के भी जा सकती है..आपको ऐसे समाज की झलक अथर्ववेद में मिलेगी..

अब जब श्वेतकेतु ने अपनी माँ को किसी और पुरुष के साथ जाते हुए देखा होगा तो उसपे क्या बीता होगा और उनके पिता उद्दालक ने इसपे कोई प्रश्न नहीं किया..

श्वेतकेतु ने इस पूरे सिस्टम को बदला और एजुकेशन की तमाम नयी किताब अपनी पसंद नापसंद नज़र से लिखी अध्ययन विवाह न्याय काम सम्बन्धी तमाम शास्त्र..केतु की इमेज हम एक डार्क जादुई धुंए के तौर पे भी लेते हैं केतु के बस बॉडी है जिसका सर नहीं है आप श्वेत केतु का अर्थ समझिये...
       
और इस सिस्टम के बदलाव में साथ दिया शंख मुनि ने मेरी निजी समझ से वो भी स्वछंद और स्वंत्रता के बहुत पक्षधर नहीं थे..
एक कहानी शंख और लिखित नमक २ भाई की मैंने सुनी थी लिखित ने अपने बड़े भाई शंख मुनि के आश्रम में आये और फल तोड़ के खा लिया बड़े भाई ने उन्हें चोर कहा और इतना अपराधबोध ग्रसित कर दिया की लिखत ने अपने दोनों हाँथ काट दिए..मैं तय नहीं की ये वो ही शंख हैं पर अगर हैं तो ऐसा टीचर राम राम राम !

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