पराशर नियम
पराशर के दादा जी वसिष्ठ हुए और पुत्र व्यास, उस समय में दाख़िल होइये वो दौर जब विश्वामित्र और वसिष्ठ की के बीच गंभीर तनातनी चल रही थी, वसिष्ठ के 100 पुत्र मार दिए जाते हैं बस एक पौत्र पराशर बचते हैं महभारत का काल सब कुछ तबाह हो रहा है..
वसिष्ठ की परंपरा ने जितने शास्त्र बचाए जा सकते थे जितने डाटा इन्फोर्मेशन संभाल सकते थे सब दोबारा से रिस्टोर किया
आपको पता है वेद पुराण महभारत और भी बहुत कुछ कृष्ण द्वैपायन व्यास ने लिखा या जो बचाया जा सकता था इस परंपरा ने बचाया
एजुकेशन और धर्म अर्थ काम मोक्ष सम्बन्धी बहुत सी किताबें आयीं...
हिन्दू धर्म जिन नियमावली को फॉलो करता है वो पराशर की हैं, ज्योतिष की बहुत सारी परंपरा लगभग गायब हैं या उनका बहुत कम अंश मिलता है जैसे जैमिनी,भृगु, गौतम आदि
1. बृहत्पराशर होरा शास्त्र,
2. लघुपाराशरी (ज्यौतिष),
3. बृहत्पाराशरीय धर्मसंहिता,
4. पराशरीय धर्मसंहिता (स्मृति),
5. पराशर संहिता (वैद्यक),
6. पराशरीय पुराणम् (माधवाचार्य ने उल्लेख किया है),
7. पराशरौदितं नीतिशास्त्रम् (चाणक्य ने उल्लेख किया है),
8. पराशरोदितं, वास्तुशास्त्रम् (विश्वकर्मा ने उल्लेख किया है)।
यहाँ से एक नयी या जितना बचाया जा सकता है उसको बचाते हुए स्कूल और एजुकेशन सिस्टम फॉर्म हुए..
फिर इसी परंपरा से निकल के लग अलग स्कूल बने..और इस परंपरा में अन्य शास्त्र जो पराशर और व्यास नहीं अन्य ऋषि परंपरा ने बचाया इसके साथ मिल के एक अलग स्कूल ऑफ़ थॉट बने..
इसके बाद पाणिनि का नाम मैं लेना चाहूँगा जिनका काल ५२०-४६० ईसा पूर्व का माना जाता है
इस से पहले का काल निर्धारण करना उसके लिए बहस करना मुझे ज़रूरी नहीं लगता..व्यर्थ की ऊर्जा लगनी है सो छोड़ रहा..
मैं अभी यह भी दिमाग नहीं लगा रहा कि किस वक़्त में कौन सी लिपि आ गयी थी क्योकि वो एक अलग बहस का हिस्सा है..
यास्क व् अन्य ऋषियों ने जो काम किया था.. पाणिनि ने उसको बहुत हद्द तक व्यवस्थित कर दिया..
पाणिनि प्रथम दृष्टा पूरी एजुकेशन सिस्टम को व्यवस्थित करते नज़र आतें हैं..
और यह बस व्याकरण में योगदान के लिए नहीं है व्याकरण का अर्थ अनुशासन भी है शास्त्र बगैर परिधि बगैर अनुशासन बगैर व्याकरण समझ नहीं जा सकते..उनके आगमन के बाद लुप्त हो चुकी पद्धत्ति वापस से शुरू होती है
जिसको समझने के लिए मैंने इसे समझने के लिए २ भागों में बांटा है
वैदिक
अवैदिक
अवैदिक में वो सारी परंपरा आ जाति है वैदिक स्कूल सिस्टम को नहीं फॉलो करती,
हुआ यूँ की धीरे धीरे स्कूल ने वो सारे विषय जो उन्हें उनकी समझ से उनके समाज के लिए उनकी विचारधारा को पोषित करते हुए नहीं लगे हटा दिए..
या उनके अलग स्कूल बने और कहा गया उतने शास्त्र पढने की ज़रुरत क्या है क्योकि जीवन अभी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा था..
नाट्य शास्त्र को या ध्वनि शास्त्र जिनका लोक में ज़रुरत नहीं थी उनके हिसाब से गायब होती रहीं...
कुछ कुछ जगह सरक्षण मिलने के कारण बच भी गयी कुछ ग्रन्थ भी बच गए और कुछ स्कूल भी उभरते और डूबते रहे इसमें जैन और बुद्ध परंपरा के स्कूल भी शामिल है..
वैदिक परंपरा में ख़ास १८ शास्त्र को मान्यत: है
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छंद, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र, पुराण, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गांधर्ववेद और अर्थशास्त्र। इन अठारहों शास्त्रों को 'अठारह विद्याएँ' भी कहते हैं।
आप देख रहें हैं संगीत नाट्य नृत्य काम वास्तु आदि शास्त्र किस तरह से डी ग्रेड कर दिए गए
पर कही कही इसकी डिटेल किसी के पास मिल जाए जैसे १६००० राग रागनियाँ मानी जाती हैं पर कितनी अभी मिलती हैं या शायद अभीभी किसी के पास जानकारी हो और पब्लिक में हो ओसे बहुत से क्लासिक शास्त्र हैं जो अभी 50 सालों में अलग अलग जगह से निकलें हैं जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं थी अब वो हम समझ सकतें हैं या हमारे किसी काम आयेंगे की नहीं यह अलग बहस का हिस्सा है..
वैदिक शिक्षा विधि इसे वेदांग भी कहते हैं इसके 6 हिस्से हैं
शिक्षा, कल्प व्याकरण छन्द निरुक्त और ज्योतिष
ये स्कूल लेवल की बेसिक एजुकेशन है
इसके बाद डिटेल में शास्त्र पढ़ायें जाते हैं
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